LOKPRIYA AADIVASI KAHANIYAN (Hindi Edition)
VANDNA TETE
"आदिवासियों का ‘कहना’ बिखरा हुआ है, बेचारगी और क्रांति, ये दो ही स्थितियाँ हैं, जिसकी परिधि में लोग आदिवासियों के ‘कहन’ को देखते हैं। चूँकि गैर-आदिवासी समाज में उनका बड़ा तबका, जो भूमिहीन और अन्य संसाधनों से स्वामित्व विहीन है, ‘बेचारा’ है, इसलिए वे सोच भी नहीं पाते कि इससे इतर आदिवासी समाज, जिसके पास संपत्ति की कोई निजी अवधारणा नहीं है, वह बेचारा नहीं है। वे समझ ही नहीं पाते कि उसका नकार ‘क्रांति (सत्ता) के लिए किया जानेवाला प्रतिकार’ नहीं बल्कि समष्टि के बचाव और सहअस्तित्व के लिए है। जो सृष्टि ने उसे इस विश्वास के साथ दिया है कि वह उसका संरक्षक है, स्वामी नहीं।इस संग्रह की कहानियाँ आदिवासी दर्शन के इस मूल सरोकार को पूरी सहजता के साथ रखती हैं। क्रांति का बिना कोई शोर किए, बगैर उन प्रचलित मुहावरों के जो स्थापित हिंदी साहित्य व विश्व साहित्य के ‘अलंकार’ और प्राण तत्त्व’ हैं।एलिस एक्का, राम दयाल मुंडा, वाल्टर भेंगरा ‘तरुण’, मंगल सिंह मुंडा, प्यारा केरकेट्टा, कृष्ण चंद्र टुडू, नारायण, येसे दरजे थोंगशी, लक्ष्मण गायकवाड़, रोज केरकेट्टा, पीटर पौल एक्का, फांसिस्का कुजूर, ज्योति लकड़ा, सिकरा दास तिर्की, रूपलाल बेदिया, कृष्ण मोहन सिंह मुंडा, राजेंद्र मुंडा, जनार्दन गोंड, सुंदर मनोज हेम्ब्रम, तेमसुला आओ, गंगा सहाय मीणा और शिशिर टुडू की कहानियाँ।"
Penerbit:
Prabhat Prakashan
Bahasa:
hindi
Fail:
PDF, 1.84 MB
IPFS:
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